जहाँ डॉ श्रीमाली से मिलने के लिए गृहस्त ,व्यापारी,नेता ,अभिनेता आदि आते रहते हैं ,वहीँ साधु - सन्यासी ,योगी भी मंत्र साधना सीखने या विचार - विमर्श करने के लिए आते ही रहते हैं ।
एक बार " स्वामी सियाराम शरण " आये थे ,उम्र साठ - पैसठ के लगभग ,धवलकेशी पर हृष्ट - पुष्ट ,तेजस्वी - उन दिनों गुरूजी के परिचित ज़्यादा आ गए थे ,अतः स्वामी जी को मेरे ही कमरे में ठहरने की आज्ञा दे दी थी ,और वे मेरे ही कमरे में ठहरे थे ।
ठहरने के दुसरे या तीसरे रोज प्रातः साढ़े चार बजे के लगभग उठकर शौचादि निवृत्ति के लिए बाहर गए ,रास्ता गुरूजी के साधना कक्ष के सामने से था ,सामान्यतः गुरूजी साधना कक्ष का दरवाज़ा अंदर से बंद कर देते हैं ,परन्तु उस दिन भूल से थोड़ा खुला रह गया था और दो किवाड़ों के बीच की झिर्री से अंदर का दृश्य साफ दिखाई पड़ रहा था ।
स्वामी जी ने देखा ,की गुरूजी सिद्धासन मुद्रा में आसन पर बैठे हैं ,सामने दीपक व अगरबत्ती प्रज्वलित हैं ।
स्वामी जी अपने मन का कौतूहल न रोक सके और कमरे के अंदर घुस पड़े ..... पर कक्ष में कदम रखा ही था ,की धड़ाम से गिर पड़े और गिरते ही बेहोश हो गए ।
साधना के बीच में ही उठकर गुरूजी ने मुझे पुकारा तथा हम दोनों ने स्वामी जी को पलंग पर ले जाकर लिटाया ,करीब तीन घंटों के बाद उन्हें होश आया ,तब तक डॉ श्रीमाली चिन्तातुर बराबर सिराहने खड़े रहे ,होश आने के बाद जान में जान आई ।
गुरूजी बहुत बिगड़े ,बोले -- तुम्हें समझा देना चाहिए था ,पोलर । जब मैं साधना में होता हूँ ,तो चतुर्दिक " वात्यायन तरंग चक्र " घूमता रहता हैं ,अतः बिजली सा करंट लगना स्वाभाविक हैं ,यह तो अच्छा हुआ कि स्वामी जी झटके को झेल गए अन्यथा मुह काला हो जाता ।
स्वामी जी इस घटना को आज भी नहीं भूले होंगे ।
---- TAKEN FROM GURUJI'S BOOK " AMRITH BOOND "
एक बार " स्वामी सियाराम शरण " आये थे ,उम्र साठ - पैसठ के लगभग ,धवलकेशी पर हृष्ट - पुष्ट ,तेजस्वी - उन दिनों गुरूजी के परिचित ज़्यादा आ गए थे ,अतः स्वामी जी को मेरे ही कमरे में ठहरने की आज्ञा दे दी थी ,और वे मेरे ही कमरे में ठहरे थे ।
ठहरने के दुसरे या तीसरे रोज प्रातः साढ़े चार बजे के लगभग उठकर शौचादि निवृत्ति के लिए बाहर गए ,रास्ता गुरूजी के साधना कक्ष के सामने से था ,सामान्यतः गुरूजी साधना कक्ष का दरवाज़ा अंदर से बंद कर देते हैं ,परन्तु उस दिन भूल से थोड़ा खुला रह गया था और दो किवाड़ों के बीच की झिर्री से अंदर का दृश्य साफ दिखाई पड़ रहा था ।
स्वामी जी ने देखा ,की गुरूजी सिद्धासन मुद्रा में आसन पर बैठे हैं ,सामने दीपक व अगरबत्ती प्रज्वलित हैं ।
स्वामी जी अपने मन का कौतूहल न रोक सके और कमरे के अंदर घुस पड़े ..... पर कक्ष में कदम रखा ही था ,की धड़ाम से गिर पड़े और गिरते ही बेहोश हो गए ।
साधना के बीच में ही उठकर गुरूजी ने मुझे पुकारा तथा हम दोनों ने स्वामी जी को पलंग पर ले जाकर लिटाया ,करीब तीन घंटों के बाद उन्हें होश आया ,तब तक डॉ श्रीमाली चिन्तातुर बराबर सिराहने खड़े रहे ,होश आने के बाद जान में जान आई ।
गुरूजी बहुत बिगड़े ,बोले -- तुम्हें समझा देना चाहिए था ,पोलर । जब मैं साधना में होता हूँ ,तो चतुर्दिक " वात्यायन तरंग चक्र " घूमता रहता हैं ,अतः बिजली सा करंट लगना स्वाभाविक हैं ,यह तो अच्छा हुआ कि स्वामी जी झटके को झेल गए अन्यथा मुह काला हो जाता ।
स्वामी जी इस घटना को आज भी नहीं भूले होंगे ।
---- TAKEN FROM GURUJI'S BOOK " AMRITH BOOND "
1 comment :
What is the science behind this? Can someone please explain to me how this works? My email is erryrruwufa2323@gmail.com.
Post a Comment